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उपरोक्त गाथामें अनुयोग द्वार सूत्र में वर्णित १२ उपमाओं से भ्रमर की उपमा का विशद वर्णन किया है ।
दूसरा अध्ययन यह अध्ययन बहुत कुछ अंश में उत्तराध्ययन सूत्र के २२ में अध्ययन से मिला जुलता है । उसकी बहुत सी गाथाएं इसमें भी ज्यों की त्यों रख भी गई है।
तिसरा अध्ययन इसका कुछ भाग निशीथ सूत्र आदि में से लिया हुआ मालूम होता है।
चौथा अध्ययन आचारांग सूत्र के २४ वें अध्ययन से बिलकुल मिलता जुलता है।
पांचवां अध्ययन आचारांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध के 'पिण्डैषणा' नामक प्रथम अध्ययन का लगमग अनुवाद मात्र है । अन्तर केवल इतना ही है कि यहां उसका वर्णन विशेष सुन्दरता के साथ किया गया है।
छठा अध्ययन समवायांग सूत्र के १८ समवायों की १८ शिक्षाओं का वर्णन है।
सातवां अध्ययन आचारांग सूत्र के दूसरे अतस्कंध के भाषा नामक १३ वें अध्ययन का यह विस्तृत वर्णन है।
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