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दशवकालिक सूत्र
[१६] जो जाति, रूप, लाभ अथवा ज्ञानका अभिमान नहीं करता,
सर्व प्रकार के अहंकारों को छोड़ कर सद्धर्म के ध्यानमें ही
संलग्न रहता है वही आदर्श भिन्नु है। [२०] जो महामुनि सच्चे धर्मका ही मार्ग बताता है, जो स्वयं
सद्धर्म पर स्थिर रहकर दूसरों को भी सद्धर्म पर स्थिर करता है, त्याग मार्ग ग्रहण कर दुराचारों के चिह्नों को त्याग देता है (अर्थात् कुसाधु का संग नहीं करता) तथा किसी के ।
साथ ठट्ठा, मश्करी, दृष्टि श्रादि नहीं करता वही सच्चा भितु है। [२१] (ऐसा भिनु क्या प्राप्त करता है ?) ऐसा प्रादर्श भितु सदैव
कल्याणमार्ग में अपनी आत्मा को स्थिर रखकर नश्वर एवं अपवित्र देहावास को छोडकर तथा जन्ममरणके बंधनों को सर्वथा काटकर अपुनरागति (वह गति, जहांसे फिर लौटना न पडे अर्थात् मोक्ष) को प्राप्त होता है।
टिप्पणी-अपनी अंतराल्ला को वंचना करनेवाले एक भी कार्य न कर, -गृहस्थ तथा भिक्षु को जिससे घृणा हो ऐसे समस्त कार्यों का त्याग कर भिक्षु साधक केवल समाधिमागमें ही विचरण करे और अंतरात्मा की मौज में ही मस्त रहे।
ऐसा मैं कहता हूं:इस प्रकार 'भिक्षु नाम' नामक दसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ।