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प्रस्तावना
जैन आगमों में दशवकालिक सूत्र मूलसूत्र तरीके माना जाता है । आगम साहित्य (श्वे० मू० तथा श्वे० स्था० के मान्य) के अंग, उपांग, मूल तथा छेद ये चार विभाग हैं । इन सबको संख्या ३१
और एकै आवश्यक सूत्र इन सबको मिलाकर कुल ३२ सत्र, सर्वमान्य हैं । उस में से मूल विभाग में दशवकालिक का समावेश होता है।
आचारांग, सूयगडांग आदि १२ सूत्रों की गणना अंग विभाग में की जाती है किन्तु उनमें से 'दृष्टिवाद' नामक एक समृद्ध एवं सुन्दर अंग सूत्र आजकल उपलब्ध नहीं है इसलिये कुल ११ हो अंग माने जाते हैं । उववाई, रायपसेणी इत्यादि की गणना उ पांग में; उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि की गणना मूल में और व्यवहार, वृहत्कल्प आदि की गणना छेद सूत्रो में की जाती है ।
__अंग एव उपांगो में जैनधर्म के मूलभूत सिद्धान्त के सिवाय विश्व के अन्य आवश्यक तत्त्वों, उदाहरण के लिये जीव, अजीव (कर्म) तथा उसके कार्य कारण की परंपरा एवं कर्मबंधन से मुक्त होने के उपाय आदि का भी खूब ही विस्तृत वर्णन किया गया है। मूल