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विनयसमधि
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टिप्पणी-क्रोध, मूर्खता, अमिमान, कुवचन, माया, तथा शठता आदि सव सज्जनता के शत्रु हैं। ये दुर्गुण सच्चे विनयभावको उत्पन्न ही नहीं होने देते और इसलिये वैसा जीवात्मा लोक तथा परलोक में प्रवाहमें पडे हुए काष्ठकी तरह पराधीन बनकर दुःख, खेद, छेश, शोक, वैर, विरोधर्म ही पडा २ सडता रहता है। उसे कभी भी शांतिका श्वास लेनेका अवकाश ही नहीं मिलता।
[५] कोई उपकारी महापुरुष जव सुन्दर शिक्षा देकर उसको विनय
मार्ग पर लानेकी प्रेरणा करते हैं तब मूर्ख मनुष्य उनपर उल्टा क्रोध कर उस शिक्षाका तिरस्कार करता है। उसका यह कार्य
वस्तुतः स्वयं श्राती हुई स्वर्गीय लक्ष्मीको लकडीसे रोकने जैसा है। [१] उदाहरणके लिये, वे हाथी और घोडे जो (अपनी अवनीतताके
कारण) प्रधान सेनापतिकी आज्ञाके आधीन नहीं हुए वे (फौज में भर्ती न होकर) केवल बोझा ढोनेके काममें लगाये जाकर
दुःख भोगते हुए दिखाई देते हैं। [६] और उसी सेनापतिकी आज्ञा के श्राधीन रहनेवाले हाथी और
घोडे महा यश एवं समृद्धिको प्राप्त होकर अत्यंत दुर्लभ सुखोंको भोगते हुए देखे जाते हैं।
टिप्पणी-फौजमें वही हाथी, घोडे लिये जाते है जो फौजी कायदोंको जानते हैं और सेनापतिकी आशानुसार युद्ध संबंधी सभी क्रियाएं करते हैं। ऐसे घोडों तथा हाथियोंका अत्यधिक लालनपालन किया जाता है और उन्हें उत्तमसे उत्तम खुराक तथा आराम दिया जाता है। दशहरा आदि त्यौहारोंक अवसर पर उन्हें सुवर्ण तथा चांदीके गहनोंसे सजाया जाता है तथा उनपर रेशमी भूलें डाली जाती हैं। उनकी सेवामें अनेक चाकर लगे रहते है। किन्तु जो हाथी घोडे अपनी उइंडताके कारण फौजी नियमों को नहीं सीख पाते ,