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मद्रास प्रान्त । मदरा हिंदुस्थानके बहुत पुराने शहरोंमेंसे है । अंध्रदेशके जैनराजाने पांड्यराजाको निकालकर मदुराका राज्य बना लिया था। वैदिकमतावलम्बी और जैनियोंमें कई झगडे हो थे। इस राजाके समयमें प्रायः सब लोग जैनमतावलम्बी होगये थे । प्राचीन काल में हिन्दुस्थानके दक्षिणीय भागकी राजधानी और विद्याभ्यासका मुख्य स्थान था, यहांके पंडित प्रसिद्ध होते थे । भारतवर्षके राज्योंमें कोई राज्य ऐसा नहीं है जिसका राजवंश इतनी बड़ी मुद्दत तक बराबर कायम रहा हो । कई एक शिलालेखों और तांबेके दानप. त्रोंपर पांडयवंशके राजाओंके नाम दीख पड़ते हैं, इस वंशके अन्तिम राजा 'सुन्दर पांड्यनेही वंश-बैरके कारण जैनियोंका नाश किया और अपने पड़ोसके चोल राज्यको जीता। ११ वीं सदीमें उत्तरसे आक्रमण करनेवाले मुसलमानने सुन्दरपांडचको परास्त किया था।
मदरामें देखने योग्य स्थान-रेल्वेस्टेशनसे करीब एक मील पश्चिम मीनाक्षी, सुन्दरेश्वरशिवका मन्दिर ८४५ फीट लम्बा ७२५ फीट चौड़ा, अर्थात् २२ बीघेमें यह मन्दिर बना हुआ है। बाहिरकी दीवारकरीब २१फुट ऊंची है, इसके चारों बंगलोंपर प्रतिमाओंसे पूर्ण रंगोंसे चित्रित ग्यारह एक ही समान एक एक गोपुर हैं। इनमेंसे एक गोपुर १५२ फीट ऊंचा है । इस मन्दिरमें संगतराशीका उत्तम काम बना हुआ है। तिरुमलईनायका महल रेल्वे स्टेशनसे १॥ मील पश्चिमकी तरफ है, अब यह सरकारी आफिसोंके काममें आता है। तेप्पुकुलम् (बड़ा तालाब) नामके तालाबमें उत्सवके समयमें मन्दिरकी मूर्तियां नावमें बैठाकर फिराई जाती हैं । मदुराके रेल्वे स्टेशनसे ३ भील पूर्व रामेश्वरके मार्गमें वैगानदीके उत्तर १२०० गज लम्बा और इतना ही चौड़ा एक तालाब आर है। इसके चारों तरफ पत्थरके घाट, मध्यमें मोरब्बा, टापूपर एक शिखरदार बड़ा मन्दिर है, टापूपर सुन्दर वाटिका भी लगी है.। इनके सिवाय कलेक्टरका मकान, वटका बड़ा वृक्ष, बाजार, सरकारी कचहरियां और स्कूल इत्यादि देखने योग्य स्थान हैं।
मदुराकी मनुष्यसंख्या अनुमान ८८ हजार है, इनमें सिर्फ ८-१० जैनी है।। - मदुरामें पगड़ियोंके किनारोंपर सुन्दर सुनहरी काम अच्छा बनता है, और एक प्रकारके 'अजीब लाल कपड़े तैयार होते हैं। कपड़े और पीतल के बर्तनोंके लिये मदुरा प्रसिद्ध ह ।
श्रीक्षेत्र मनारगुडी। यह कसबा जिला तंजोरमें 'निडमंगलम् (S. I. R.) स्टेशनसे करीब ९ मील की दूरा पर है । यह स्थान श्री जीवेन्द्र स्वामी का जन्मस्थान है। कहते हैं कि यहां २०० वर्ष पूर्वम एक ऋषि पर्णकुटिकामें तपस्या करतेथे और उसमें श्रीपार्श्वनाथस्वामीकी प्रतिष्ठा हुई थी। जब यह बात 'कुम्भकोणम्' में जाहिर हुई तब वहांके जैनियोंने 'मनारगुडी' में आकर एक बड़ा भारी मन्दिर बनवाया । और बड़े समारोहसे रथोत्सव कराया। यह क्षेत्र इसीसे प्रसिद्ध