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________________ ८५९ मद्रास प्रान्त । पेरुमण्डूर । अर्काट कमिश्नरीमें 'तिण्डिवनमसे' ४ मीलके करीब 'पेरुमण्डूर' सबसे बड़ा प्राचीन जैनियाँका ग्राम है । दिगम्बरियाके यहां ९० घर हैं जिनमें ३०० के करीब जैनी रहते हैं । ग्रामके दोनों मन्दिर बहुत अच्छे हैं, जिनमें एक प्राचीन, और दूसरा, अर्वाचीन करीव २०० वर्षका है । अर्वाचीन मन्दिरमें डेड़सौ मूर्तियां पीतल और अन्य धातुओंकी अति शोभायमान हैं । मन्दिरकी दीवालपर एक लेख पाया जाता है उससे यह प्राचीन कथन प्रकट होता है: ग्रामकी शासन देवी श्री 'धर्मादेवीकी' प्रतिमा अति मनोज व बड़ी हैं, वह मद्रासके निकट प्राचीन ग्राम मैलापुरमें थी । एक समय किसी आदमीकां स्वप्न हुआ कि " मैलापुर समुद्रमें डूब जावेगा इस लिये मूर्तिको यहांसे उठाकर दूसरे ग्राममें ले जाओ" तब वह आदमी नींदसे उठा और दूसरे दिन मूर्तिको गाडीमें रखकर दक्षिणकी ओर ले गया। जब गाड़ी इस ग्राममें आगई तब यहांसे बहुत प्रयत्न करनेपर भी आगे न चलकी तब यहां मन्दिर बनवाया और मृर्तिकी प्रतिष्ठा बड़ी समारोहसे कराई गई तबसे यह स्थान प्रसिद्ध हो गया है। दोनों मन्दिरामं पूजन प्रक्षाल प्रतिदिन ठीक समयपर होता है । २०० वर्ष पूर्वमें 'संधि महामुनि' और 'पण्डित महामुनिने चित्तम्बूर ग्राममें वहांके ब्राह्मणोंके साथ वाद विवाद कर कर जैनधर्मका डंका बजाते रहे थे तबसे यह दिगम्बर जैनियोंका विद्यापीठ. हो रहा है । इस समय में भी कई जैनीभाई धर्मशास्त्रोंके जानकार पाये जाते हैं । वर्त्त-मानमें जो 'दि० जैन पाठशाला यहांपर बहुत कालसे स्थापित है, उसमें पं० 'चंद्रनाथ नैनार मेल- 'मल्यानूर' वाले ओर पण्डित 'दोरासामी मुदलियार 'तिरुवालूर' (S. I. R.) वाले छात्रोंको धर्मशास्त्रोंकी शिक्षा देते हैं । ये शास्त्रीजी जैनधर्मके अच्छे जानकार हैं और संस्कृत, व्याकरणको भी अच्छी जानते हैं । पाठशालामें ३० विद्यार्थी मय लड़कियोंके काव्य, तत्वार्थ सूत्र, पंचस्तोत्र, व्याकरण आदिमं शिक्षा पाती हैं । काव्योंमेंसे नागकुमार काव्य' और 'क्षत्र चूडामणी' पढ़ाया जाता है । धर्मशास्त्र मन्दिरोंमें करीव १५० ताड़पत्र पर लिखे हुए अच्छी तरहसे रक्खे हैं । श्रीक्षेत्र पोन्नुर | यह प्राचीन क्षेत्र जिला 'चित्तोरमें' रेलवे स्टेशन 'तिण्डिवनम्' (S. I. Ry ) से करीव २५ मीलपर एक बड़े पहाड़की तलेटीमें है । रास्ता स्टेशनसे ग्राम तक अच्छा है । यह. ग्राम प्राचीन कालमें जैनियोंका ही था और इसका प्रबन्ध प्रसिद्ध जैन राजा 'सकल लोकाचार्यवर्तिन राजनारायण शम्भूवरायर' के हाथ में था । श्री तिरुमलाई पहाड़पर जो
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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