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मद्रास प्रान्त |
तक रास्ता अच्छा है और शेष रास्ता चट्टानोंका है। स्टेशन से पहाड़की तलेटीतक सवारी हर समय किराये पर मिलती है । पहाड़की तलेटीके आसपास बहुतसे छोटे बड़े ग्राम हैं, जिनमें से तिरुमलै प्राचीन कालसे क्षेत्र होनेका कारण प्रसिद्ध है । वर्त्तमानमें वहांपर दिगम्बर श्रावकका घर एक भी नहीं है केवल जैन वढियारोंके ( पूजारी ) १० गृह तथा ४० मनुष्य संख्या है |
तिमलै पहाड़ करीब १००० फीट ऊंचा है । करीब ३०० फ़ीटकी ऊंचाई पर ४ दिगम्बर जैनियोंके मंदिर बड़े उत्तम बने हुये हैं। तलेटीसे इन मंदिरोंतक सीढ़िया बनी
। पूजनप्रक्षाल आदि दूसरे मन्दिरमें होता है । शेष दो मन्दिर एक गुफा में हैं । इस गुफाकी पिछली बाजू में बहुत बड़ी चट्टानपर चार जैनमूर्तियां खुदी हैं । इस गुफाको रंगीन खोई कहते हैं, कारण इसमें सुनहरी और रंगीन कारीगरीका काम बहुत मनोज्ञ पाया जाता है । यहांपुर के शिलालेखोंसे मालूम होता है कि करीब एक हजार वर्ष पूर्व में इस क्षेत्रका नाम "वैगाई' था पहाड़की चोटीमें और गुफाके आसपास चट्टानों पर तीन चार शिलालेख हैं जिनका वर्णन या सारांश आगे दिया है ।
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पहाड़की चोटी पर ३ मन्दिर अति उत्तंग हैं, जिनमें एक नैऋत्य दिशाकी तरफक गिरा हुआ है इसके सामनेकी चोटीपर एक एक चैत्यालयमें २० बीस फीट ऊंची काले पत्थर की प्रतिमाएं कायोत्सर्ग विराजमान हैं । पूर्व बाजू में श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर हैं, इसका जीर्णोद्धार सरकारकी तरफसे हुआ है । कहते हैं कि यह पादुका श्रीमत् 'ऋषभसेन' गणधरकी है ।
तटीमें गोपुर के सामने गड़े हुए चट्टानपरके शिलालेख का सारांश
तिरुमलै पहाड़का शिलालेख तामिल भाषा में है जिसका भावार्थ यह है : - यहां पर किसी एक मुनि और 'गुणवर्मा' नामक जैन अध्यापकने तपस्याके लिये यह खोह बनवाई और उसका नाम 'गणिशेखरे मरुपोर चुरियन' रक्खा |
तिरुमलै पहाड़की चोटीमें चट्टानपर का शिलालेख तामिल भाषामें लिखा हुआ उदेयार 'राजेंद्र चोडदेवके' समयका ( शके १००० ) है उसका सारांश : - उदेयार 'राजेंद्र चोडने ' अपने अतुल पराक्रमसे राजा 'इरामका' मुकूट हराया और 'सीलोन' के राजाको परास्त किया 'चामुण्डाप्पै नानाप्पायन' व्यापारीकी औरतने पेरुम्बाणप्पाड़ीवा कराई वरी मलीनूर बैगावूर पहाड़पुरके श्री कुन्दवई जिनालयका पलिचण्डम् तिरु नन्दादीप दिया है। शिलालेख नं०-३.
यह शिलालेख रंगीन गुफा और गोपुरकी सीढ़ियाँके बीच गड़ी हुआ चट्टानपर तामिली भाषामें खुदा है ।
१ मुख्य गुरु २ मरुदेव और मरुदेवी ( श्रीऋषभदेव प्रथम तीर्थंकरकी माता ) ३ सूर्यकेसमान ।