________________
७४८
बम्बई अह्मता। रहनेवाली टांकी है जिसमें बारहों महीना स्वच्छ जल भरा रहता है । श्री पार्श्वनाथकी बाई ओर यक्ष और यक्षिणीकी मूर्तियां विराजमान हैं । इसके पास ही श्रीरामचन्दजीका मन्दिर है।
(२) गिरी पार्श्वनाथ-पहाड़के उत्तरकी ओर यह मन्दिर है, इसमें पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमा विराजमान है।
इराण्णाका मन्दिर-पहाड़के मध्यमें यह स्थान है। यहांपर भी एक सुफामें स्वच्छ जलसे भरी रहनेवाली छोटीसी टांकी है । गुफाके एक पाषाणमें मनुष्याकृत मूर्ति खुदी हुइ है, जिसको इराण्णा कहते हैं।
कहते हैं कि, इस गुफामें प्राचीनकालमें श्रीमहावीरस्वामीकी प्रतिमा थी, और महावीर शब्दसे वीर, अपभ्रंश ( बिगड़ा नाम ) होकर वीराप्पा, इराप्पा, इराण्णा होगया ह । इससे यह जैनमन्दिर ही ज्ञात होता है।
श्रावण मासमें यहांपर बड़ी भारी यात्रा होती है, जिसमें यात्री कर्नाटक आदि प्रान्तोंसे आते हैं । परन्तु यात्रियोंको ठहरनेके लिये धर्मशाला आदिका कुछ प्रबंध नहीं है इस लिये यात्रियोंको ठहरनेमें बड़ी तकलीफ होती है।
इस क्षेत्रका प्रबंध 'आण्णापा चोलापा' के आधीन है। सरिसे इनाम मिली हुई जमीनकी आमदनी से प्रबंध होता है ।
कुंथलगिरि (रामकुंड)
(सिद्धक्षेत्र) बंसत्थलवरणियरे पच्छिम भायम्मि कुंथुगिरिसिहरे ।
कुलदेसभूषणमुनि णिव्वाण गया णमो तेसि ॥ यह प्राचीन सिद्धक्षेत्र निजाम' रियासतके जिला 'उस्मनाबाद' तालुका 'कळंबमें बार्शीटोन' (G. I. P.) रेलवे स्टेशनसे करीब २१ मीलके फासलेपर है । स्टेशनपर घोड़ा गाड़ी आदिकी सवारी हमेशा १॥या २) के किरायेपर मिलती है। रामकुंड' ग्रामम दिगम्बर जैनियोंके ८ घर और ३० मनुष्य संख्या है । ग्रामसे थोड़ी दूर पर्वतपरसे 'श्रीकुल-भूषण, देशभूषण मुनि मोक्ष गये हैं। पर्वतकी चोटीपर तथा मध्यमें मुख्य मुनियोंके 'चरणमन्दुिर' सहिन १० मन्दिर हैं।
यहाँके सृष्ठि सौंदर्यकी मनोहरिता अपूर्व है । लोग इसका अतिशय यह बताते है कि सूत पिशाचादिकोंकी बाधा नष्ट होजाती है। माघ मासमें प्रतिवष सुदा पूनमको बड़ा भारी मेला भरना है जिसमें रथोत्सब बड़े समारोहसे होता है। इस क्षेत्रका प्रबन्ध और भंडारखाता 'मोतीराम गुलाबचंद' रामकुंडवालोंके हाथमें ।