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श्रीपरमात्मने नमः।
बम्बई अहाता। (गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिणमहाराष्ट्र)
तीर्थक्षेत्र और प्रसिद्ध २ शहरोंका वर्णन।
अजण्टाकी खोहें। सियासच हैद्रावादमें (G. I. P.) यानी वम्वईकी बड़ी लैनके "जलगाव" होस्टेशनसे ४० मील "फरदापुर" के पास यह स्थान है । जलगांवसे
पर्वतकी तलेटीतक रास्ता अच्छा बना हुआ है तथा स्टेशनपर घोड़ा,
गाड़ी, तांगा आदि सवारी हर वकत किराये पर मिलती हैं । इस अगहकी मशहूर खोह पानी पर्वतोंको काट कर बनाये हुए गुफा मन्दिर देखने योग्य हैं । खोहें दिखलानेके लिये आदमी उसी जगह मिल सकता है । खोहों की संख्या २९ है । इनमें सब जगह बौद्ध मूर्तिया ही पाई जाती हैं । जैनियोंका और हिंदुआंका इसमें कोई भी संबंध नहीं दीख पड़ता है । ० १६वीं और १७ वी खोहोंमें एक शिलालेख पाया जाता है, जिसका सारांश इस प्रमाण है:-"महाराजा देवपंद्र दूसरा *चंद्रगुप्त' और "विक्रमादित्य" राजाऑन ई० सन् ३७५ से ४१३ तक पर्वतोंको काटकर बनवाया है" ! इनमें २४ विहारे या अस्थल हैं और ५ मन्दिर हैं । ये सब बड़े २ कील पायोंपर खड़े हैं, और उनके अन्दरकी मूर्तियोंपर खूबसूरत रोगन किया हुआ है। खोहोंमें चित्रोंका काम ऐसा ही अच्छा और सुन्दर है, कि मानों किसी जगत विख्यात यलोराके गुफा मन्दिरोंमें ही पाया जाता है । खोहामं और बाहर पहाड़पर बहुत से संस्कृतमें कुतुवे (लेख) खुदे हुए हैं । यह चित्रोंका काम करनेके लिये ई० सन् ६२६ के करीवमें चीन देशके सम्राटने एक प्रसिद्ध चित्रकारको भारतवर्षके वलाढ्य राजा “पुलकेशीके" पास भेज कर यहाँ चित्रोंका काम वनवाया था। अफसोस कि इस कामको 'अविध राजाने' देषसे खंडित करादिया था तो भी यह खोहें बड़ी ही सुन्दरदेखनेके योग्य हैं। यलोराकी अफा भारतवर्ष में मशहर हैं। दर २ के दर्शक देखने आते हैं। 'वेलचीलंणी' नामक मराठी पुस्तकमें इन गुफाओंका विस्तृत वर्णन है ।