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बंगाल-बिहार। नीचे पाव मालपर जो वस्ती है उसका नाम भी 'श्रावक है । इस पर्वतके ऊपर ४० गज जानेसे १ गुफा मिलती है, जो १० गज लम्बी और ६ गज चौड़ी होगी। इसमें १जीर्ण दि० जैन मन्दिर है, जो बिलकुल टूट गया है । ४ स्तम्भ पाषाणके द्वारपर लगे हैं। भीतर जाकर साम्हने ही प्राचीन पाषाणकी एक अत्यन्त मनोज्ञ श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी दि० जैन प्रतिमा पद्मासन विराजित है । आसनके स्थानसे २ हाथकी ऊंचाई है। सिवाय वाएँ पगके और सर्व आंगोपांग अखंडित हैं । विदित होता है किसा अजन द्वारा यह उपसर्ग किया गया हो । दोनों ओर इन्द्र हैं, फन टूटा है। अजैनलोग (लाहगावीर ) ( नंगावीर ) ऐसा नाम ले करके पूजते हैं। दस २ बीस २ कोस चारों ओर बड़ी मान्यता है । सिन्दूर और दही चढ़ाया जाता है।
श्रावण सुदी १५ सलोनेके रोज यहां बड़ा भारी मेला लगता है । इस गुफामें अन्य बहुतसी खंडित प्रतिमाएं पड़ी हुई हैं। १ पाषाणक पटमें ६ पद्मासन मूर्तियां हैं, नीचे यक्षिणीकी मूर्ति लेटी है । इस पटके नीचे एक लेख प्राचीन लिपीमें अंकित है। ऊपर एक बड़ा जैन मंदिर ईंटोंका मालूम होता है, जो कि घाँससे छाया हुआ है। शिखरका चिन्ह मालूम होता है । बीचमें १ खुदा हुआ सूराख है, जिसमें १५ हाथ डोर जाती है। इस मंदिरका द्वार पूर्व दिशाकी ओर मालूम होता है। भीतरसे प्रतिमा आदिका निकलना संभव है।
जिस स्थानपर यह श्रावक पर्वत स्थित है, इसके आस पासके लोग अब कोई जैनधर्म नहीं पालते हैं। 'श्रीपार्श्वनाथस्वामी' की प्रतिमाको उपसर्ग होना जैनियोंकी वेखवरीका ही कारण है।
श्रीसम्मेदशिखर ।
(सिद्धक्षेत्र) वीसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवंदिदा धुद किलेसा!
सम्मैदे गिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं॥ बंगालप्रान्तकं हजारीबाग जिलेमें उपर्युक्त निर्वाणक्षेत्र है । ई. आई. आर. लाइनके ईशरी' स्टेशनसे १५ मील मधुवन तक सड़क पक्की है। बैलगाड़ियां स्टेशनपर मिलती हैं । दूसरा रास्ता ई. आई. आर. लाइनमें गिरीडिह स्टेशनसे,१८ मील मधुवन है, रास्ता यहांसे मधुवनतक पक्की और साफ है । बैलगाड़ियां गिरीडिहमें भी मिलती हैं । इस