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मध्यप्रदेश !
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पर्वत बन्दना
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नीचेके मन्दिरसे उत्तरकी ओर नालेको लांघकर जानेपर सीढ़िया शुरु होती है । १०२ सीढ़ियां चढ जानेपर दाहिनी ओर आठ मन्दिर मिलते हैं । इन मन्दिरोंमेंसे ४८ नम्बरके मन्दिरमें इस समय एक प्राचीन और एक नवीन इस प्रकारकी दो प्रतिमाएं स्थापित हैं । परन्तु मन्दिर प्राचीन है । उसपर संवत् १६९१का एक शिलालेख है । ४४ में मंदिरमें संवत् १६९० की दो प्रतिमाओंके सिवाय और भी कई प्राचीन प्रति'माएं एक प्रतिमापर "धर्मचन्द्रगुरूपदेशात् " इस प्रकार लिखा है । ४३ वें मन्दिरमें मूर्तियां प्राचीन हैं । इसका जीर्णोद्धार वम्बईके शेठ सौभाग्यचन्द मेघराजजीने कराया है । ४२ वें मन्दिरमें एक बड़ी भारी पाषाणप्रतिमा और कई छोटी २ प्रतिमाएँ हैं । ४१ वें मन्दिरमें आदिनाथ भगवान्की संवत् १९५० की स्थापित हुई मूर्ति है । ४५-४६ और ४७ नम्बरके मन्दिरोंमें कोई बात विशेष उल्लेख योग्य नहीं है । इन सव मन्दिरोंके नीचे धर्मशाला हैं ।
आगे दाहिनी ओरसे धवधवा ( कुंडा ) के पास पहुंचनेपर पर्वतके गर्भ में ख़ुदा हुआ एक मन्दिर ( ४० वें नम्बरका ) मिलता है । मेंढागिरि नामसे यही मन्दिर प्रसिद्ध है । इसमें नक्काशीका काम बहुत ही आच्छा है । खंभोंकी रचना तथा ऊपरका कार्य देखकर प्राचीन भवन निर्माण विद्याका खासा परिचय मिलता है । लोग कहते कि, इस मन्दिरकी सन्धियां सीसा पिलाकर जोड़ी गई हैं। मन्रिके बाहिर हाथी, वाघ आदि जीवोंके चित्र देखने योग्य हैं । इस मन्दिरके समीप ही लगभग २०० फुटकी ऊंचाईसे पानीकी धारा पडती है, जिससे एक रमणीय जलप्रपात - बन गया है । ऊपरसे अत्यन्त शुभ्रवर्णका जल फव्वारे के समान पतित होता है। दोनों ओर मनोहर हरितवर्णके वृक्ष लगरहे हैं। जीवनधारा निरन्तर बहती रहती है । धवधवा की धाराके पड़नेसे नीचे एक पुरुषभर गहरा कुंड बन गया है । यलोराकी गुफाके धवधवकी अपेक्षा इस धवधवेकी ऊंचाई कम है । इस धवधवेकी दाहिनी ओर भी एक छोटासा धवधवा है । इन दोनों धवधवोंका संगम होकर जलका प्रवाह पर्वतसे नीचे उतरता है। नीचे जाकर भी यह प्रवाह एक धवधवेके रूपमें प्रगट होता है । वर्षाऋतुमें इस प्रदेशकी शोभा बड़ी ही मनोरम हो जाती है।
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