________________
३०८
मध्यप्रदेश। इसका विरोध करने लगे। भट्टारक पद्मनन्दि जौनयोंकी सहायता करनेके लिये गये, परन्तु वहां उनकी भी दाल नहीं गली। निदान उन्होंने निजाम सरकारसे सहायता लेनेके लिये अपने भट्टारकी वैभवके साथ हैद्राबादको प्रस्थान किया । कहते हैं कि, जिस समय वे बादशाहके दरबारमें पहुंचे, उस समय उनकी पालकी अधर थी! जैना, चार्यकी यह अद्वितीय शक्ति देखकर बादशाहने पूछा कि "आप क्या चाहते हैं ?" भट्टारक महाशयने उत्तरमें कहा, "हमको कुछ नहीं चाहिये अर्धापुरीके लोग हमको प्रतिमा नहीं लाने देते हैं। बस इसी उपसर्गका निवारण होना चाहिये।" बादशाही हुक्म मिल गया। और प्रतिमा निर्विघ्नतासे कारंजा पहुंच गई। वर्तमानमें उक्त लाई हुई मूर्ति शिरडमें है। कहते हैं, एकवार उक्त भट्टारक महाराज रात्रिको गुप्तरीतिसे मुक्तागिरिपर दैविक चमत्कारको देखनेके लिये गये थे। परन्तु वहांके संरक्षक देवने उन्हें वहां नहीं रहने दिया। लौटते समय खरपीके पास ही उनकी एकाएक मृत्यु हो गई। अतएव वहीपर उनकी समाधि बनाई गई। ___ बदनूरकी बड़ी सडक बाई ओर छोड़कर दाहिनी तरफके मार्गसे इस समाधिक पास होकर जानेमें थ्योरा गांव मिलता है वहांसे पर्वत १॥ मील रह जाता है। मार्गमें चार नालें मिलते हैं। मार्गमें वेदिका और गोमुख मिलता है यात्राके समय वेदिकापर पूजा होती है और गोमुखसे निरंतर जल बहता है।
मुक्तागिरिमें पहले प्रर्वतकी तलैटीमें रहनेका सुभीता नहीं थी परंतु एलिचपुरके प्रसिद्ध धर्मात्मा धीनक शेठ लालासा मोतीसाने जबसे (संवत् १९४७ में) जैनमंदिर बनवाकर धर्मशाला वगेरहका प्रबंध कर दिया है, तबसे सब यात्री तलैटीमें ही ठहरते हैं, इसके पहले पर्वतपर जो ६ धर्मशालाएं बनी हैं, यात्री उनमें जाकर ठहरते थे। तलेटीके मंदिरके साम्हने एक सुंदर जलप्रवाह बहता है जिससे यह स्थान बड़ा ही रमणीय जान पडता हैं।
नीचेकी धर्मशालामें एक मुनीम व ५-७ नौकर रहते हैं, जिनके द्वारा तीर्थक्षेत्रकी व्यवस्था होती है। एलोचपुरके शेठ नत्थूसावजीके द्वारा इस क्षेत्रका प्रबन्ध होता है। बापूजी लक्ष्मण आगरकर एक सुशिक्षित मुनीम हैं। '
इस तीर्थके दर्शनके लिये बड़े २ यूरोपियन अधिकारी आया करते हैं।