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मध्यप्रदेश। अति मनोग्य करीव २॥ फीट उंची पद्मासन विराजमान है। कहावतसे प्रसिद्ध होता है कि, जिस समय इस बाळापुर ग्रामको शाहनशाह बादशाहने बसाया था उस समय किसी एक पंचम श्रावक भाईको इसी ठिकाने मकान बनाते हुए यह प्रतिमाजी प्राप्त हुई थी। इन मन्दिरोंमें अनुमान १५ धर्मशास्त्र हैं। बाळापुर ग्राम १३ वी शताब्दीका बसा हुआ है । यहांपर इस्मायलखां नब्बाब एलचपुरका बनवाया हुआ आति सुंदर किला अभितक पूरा बना हुआ है और राजा जयसिंहकी वनवाई हुई छत्री नामकी इमारत नदी किनारे बहुत रमणीय देखने योग्य है।
प्राचीन मंदिरका जीर्णोद्धार होना अति आवश्यक है पूजन प्रक्षालका कोई इन्तजाम नहीं रहता है-कारण कि यहां श्रावक मन्डली बहुत ही गरीब स्थितिमें है।
यहां पगड़ी, सतरंजी उत्तम बनाई जाती हैं।
श्री अतिशय क्षेत्र
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.. बिनाजीं। यह स्थान सागरसे करेली जानेवाली सड़कपर रेहली तहसीलमें स्थित देवरीसे ४ मीलकी दूरीपर है। यहांपर ५ गृह दिगम्बर जैनियोंके और.' ३ शिखरबन्द मन्दिर हैं। इसी स्थानको "अतिशय क्षेत्र" बिनाजी कहते हैं । मन्दिरोंके सामने एक छोटीसी धर्मशाला है जिसमें अनुमान ५० के यात्री एक समयमें ठहर सकते हैं और इसीके बगलमें एक कुआं है इस लिये यात्रियोंको प्रायातकलीफ नहीं होती है।
. यहांपर सबसे पुराना मन्दिरजी मूलनायक श्रीशान्तिनाथ स्वामीका है जिसमें उक्त प्रतिमा १४ फूट अवगाहनकी अद्वितीय शान्तताको लिये खगासन विराजमान हैं। यद्यपि इस प्रतिमामें कोई शिलालेखादि नहीं है तथापि उसकी निर्माणशैलीही प्राचीनताकी साक्षी है जिससे इस प्रतिमाजीका प्रतिष्ठासमय १२ वी शताब्दीके प्रारंभमेंही प्रतीत होता है। यह मन्दिरजी प्राचीन ढंगका बना हुआ है और इसमें एक भूगर्भ (भोहरा) चौथरा भी है। .
दूसरा मन्दिरजी गाड़ा घाटवालोंके मंदिरके नामसे प्रसिद्ध है। इसमें एक प्रतिमाजी श्यामवर्ण १२ फीट अवगाहनाकी श्रीवर्धमान स्वामीकी अत्यंत मनोग्य