________________
श्रीभगवती सूत्र
.. [३६६] उत्कृष्ट अर्थात् एक कम से कम और दूसरी ज्यादा से ज्यादा। जहाँ ऊँच और नीच होता है वहाँ मध्यम होता ही है। नरक के जीवों की कम से कम स्थिति दस हजार वर्ष की है अर्थात् नरक में गया हुश्रा जीव कम से कम दस हजार वर्षे तक नरक में रहता है। और अधिक से अधिक तेतीस सागर की स्थिति है।
प्रश्न हो सकता है कि नरक किसे कहते हैं ? इसका उत्तर व्युत्पत्ति के अनुसार यह है कि-जिनके पास से अच्छे फल देने वाले शुभ कर्म चले गये हैं, जो शुभ कर्मों से रहित हैं, उन्हें 'निरय' कहते हैं और 'निरय' में जो हो वह नैरयिक' कहलाते हैं।
जैसे, जिसके पास से सम्पत्ति चली जाती है उसे दरिद्र कहते हैं । जहाँ सम्पत्ति नहीं है वहाँ दरिद्रता होती ही है और दरिद्रता वाले को दरिद्र कहते हैं । यह गुण गुणी का ' भेद है। दरिद्रता गुण है और गुणी वह प्राणी है जो दरिद्र हो। इसी प्रकार जो सुख से अतीत है और पुण्य-फल से भ्रष्ट है उसे नैरयिक कहते हैं।
. 'आयु कर्म के पुद्गलों के रहने की मर्यादा स्थिति कहलाती है। श्रात्मा रूपी दीपक में, श्रायु कर्म रूपी. तेल के विद्यमान रहने की सामयिक मर्यादा का नाम स्थिति है।
..जो जीव अशुभ कर्म वाँध कर नरक योनि में जाते हैं, वे वहाँ कम से कम दस हजार वर्ष अवश्य रहते हैं। कोई भी जाव दस हजार वर्ष से पहले नरक से लौट कर नहीं आ सकता। इसी प्रकार नरक में अधिक से अधिक तेतीस