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________________ [३६५] नारक-वर्णन उत्तर-हे गौतम! जघन्य से दस हजार वर्ष की स्थिति कही है और उत्कृष्ट रूप से तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है। प्रश्न-हे भगवन् ! नारकी कितने समय में श्वास लेते हैं ? और कितने समय में श्वास छोड़ते हैं ? उत्तर-उच्छ्वास पद के अनुसार समझना चाहिए । प्रश्न--भगवन् ! नारकी आहारार्थी हैं ? उत्तर- गौतम! पएणवणास्त्र के आहारपद के पहले उद्देशक के अनुसार समझना । गाथा का अर्थ-नारकी जीवों की स्थिति, उच्छ्वास, तथा आहार सम्बन्धी कथना करना चाहिए । नारकी क्या ग्राहार करते हैं? समस्त यात्मप्रदेशों से आहार करते हैं ? समस्त थाहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और पाहार के द्रव्यों को किस रूप में परिणमाते हैं ? व्याख्या-श्री गौतम स्वामी, भगवान महावीर से पूछते हैं कि हे भगवन् ! श्रापने जीव के चौवीस दंडक कहे हैं, उन में ले नरक-योनि के जीव की स्थिति कितनी है ? अर्थात् जीव नरक में कितने समय तक बना रहता है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने फरमाया-हे गौतम ! स्थिति दो प्रकार की होती है-एक जघन्य, दूसरी
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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