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________________ श्रीभगवती सूत्र - [३६०. निरपेक्षा नया मिथ्यः, सापेक्षा वस्तुतोऽर्थकृत् । यहाँ एक शंका और होती है । वह यह कि 'चलमाणे चलिए' यह प्रश्न पहले क्यों पूछा गया है ? पहले इस शंका के विषय में कहा गया था कि यह पद मोक्ष के लिए है। मगर अव तो वह मोक्ष के लिए नहीं रहा, सामान्य रूप से सभी के लिए हो गया। अतएव जहाँ पहले पद को मांगलिक कहा था, . वहाँ अव यह मांगलिक न रहा तब फिर इस मांगलिक पद को सर्वप्रथम स्थान देने का क्या प्रयोजन है ? इसका उत्तर दूसरे प्राचार्यों ने यह दिया है कि सर्वप्रथम 'नमोसुश्रायकहकर मंगल किया ही है। फिर तस्वचिन्ता की सभी बातें मांगलिक ही होती हैं। इस 'चलमाणेचलिए रूप तत्व चिन्ता का अन्त मोक्ष है। अंतएव यह पद भी मांगलिक ही है। इसमें मोक्ष प्राप्ति का विवेचन भी अन्तभूत हो जाता है। ___ मोक्ष की प्राप्ति जीव को ही होती है। अतएवजीव तत्व का मूल स्वरूप समझ लेने पर ही मोक्ष का स्वरूप ठीक ठीक समझ में आ सकता है। जीव का स्वरूप समझने के लिए यह समझना भी आवश्यक है कि वह कितने प्रकार के हैं और वर्तमान में किस किस स्थिति में विद्यमान हैं। जीव के भेद बतलाने के लिए संक्षेप में कहा गया हैनेरड्या असुराई पुढधाई बेइंदियादओ चेव । पंचिंदिय-तिरिय-नरा, चिंतरजोइसियवेमाणी ॥.
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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