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श्रीभगवती सूत्र
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प्रदेश का अर्थ है-कर्म का दल । पाँच हस्व अक्षर उच्चारण-काल जितने परिमाणवाली और असंख्यात समय युक्त गुणश्रेणी की रचना द्वारा कर्म प्रदेश का क्षय किया जाता है। यद्यपि वह गुणश्रेणी है सिर्फ पाँच हख अक्षर उचारणकाल के वरावर काल वाली है, लेकिन इतने से काल में ही असंख्यात समय हो जाते हैं। वह गुणश्रेणी पूर्वरचित होती है। तेरहवें गुणस्थान से ही उस गुणश्रेणी की रचना होती है। इस गुणश्रेणी से समुच्छिन्न क्रिया नामक शुक्लध्यान का चौथा पाया उत्पन्न होता है। उसमें पहले समय से असंख्य समय तक प्रतिसमय असंख्य गुणा वृद्धि से कर्म-पुद्गल को दग्ध किया जाता है। अर्थात् पहले समय में जितने कर्म-पुद्गल दग्ध होते हैं, उससे असंख्यात गुणे दूसरे समय में दग्ध होते हैं । इसी प्रकार तीसरे समय में, दूसरे समय की अपेक्षा भी असंख्यात गुणे कर्मों को दग्ध किया जाता है, इस प्रकार दग्ध करने का क्रम बढ़ता जाता है। इसका कारण यह है कि ज्योर कर्मपुद्गल दग्ध होते जाते हैं, त्यों त्यों ध्यानानि अधिक प्रज्वलित होती जाती है और वह अधिकाधिक कर्मपुद्गलों को दग्ध करती है। - इस प्रकार भिद्यमान और दह्यमान पदों का अर्थ भी अंलग-अलग है।पाँच ह्रस्व अक्षर उच्चारण करने में असंख्यात समय लगते हैं । इन असंख्यात समयों में से पहले ही समय में जो कर्मपुद्गल दग्ध होते हैं, उनकी अपेक्षा उन्हें 'दग्ध हुए ऐसा कहा जा सकता है।
__ . यद्यपि जला देनां दूसरी वस्तुओं के संबंध में भी लोक में प्रसिद्ध है, किन्तु यहाँ उसे प्रहणं नहीं करना चाहिए।