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________________ श्रीभगवती सूत्र [३४४] समाधान-सव ज्ञानों में केवलज्ञान ही उत्कृष्ट हैं। वही क्षायिक शान है । कर्मों का क्षय होने से वही उत्पन्न होता है। इन चार पदों से अन्य शानों की उत्पत्ति मानी जाय तो अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। अतः इन पदों से केवलज्ञान की उत्पत्ति मानना ही समुचित है। और इसी अपेक्षा से इन चार पदों को समान अर्थ वाला बतलाया गया है। । . शंका-केवलज्ञान की उत्पत्ति में यह चार पद क्या काम करते हैं ? दो या तीन पदों से ही केवलज्ञान क्यों नहीं उत्पन्न होता ? केवलज्ञान के लिए इन चारों की आवश्यकता क्यों है? समाधान-पहला पद 'चलमाणे चलिए है। वह केवलज्ञान की प्राप्ति में यह काम करता है कि इससे कर्म उदय में आने के लिए चलित होते हैं । कर्म का उदय दो प्रकार से होता है-उदय भाव से और उदीरणा से । स्थिति का क्षय होने पर कर्म.अपना जो फल देता है वह उदय कहलाता है और अध्यवसाय विशेष या तपस्या श्रादि क्रियाओं के द्वारा जो कर्म स्थिति पूर्ण होने से पहले ही उद्य में लाये जाते हैं, उसे उदीरणा कहते हैं। दोनों ही जगह उदय तो समान ही है, मगर एक जगह स्थिति का परिपाक होता है और दूसरी जगह नहीं । उदय या उदीरणा होने पर कर्म की वेदना होती है अर्थात् कर्म के फल का अनुभव होता है। जिस कर्म के फल का अनुभव हो गया, वह फर्म नष्ट हो जाता है-आत्मा के प्रदेशों से पृथक् हो जाता है। उसे कर्म · का पहीण' होना कहते हैं।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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