________________
श्रीभगवती सूत्र
[१२] है! श्राशय यह है कि चारित्रमा उपचात नहान से, प्रभावी होने पर भी भाग कदा।
अब तीसरा प्रश्न विराधक संयमी का है। विराधक संयमी अगर देवगति में जाय तो जघन्य भवनवासी और उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में इतना होता है।
पहले पाराधर संयमी का जो स्वरूप यनलाया गया है. उनसे विपरीत विरामक संयमी कहलाता है। अयांत जिसने महावत ग्रह. तो किये हैं, मगर उनका पालन भली-- भाँति नहीं किया, जो नियंठों की मर्यादा नांवर महावत में दोप लगाता है, वह विरोधक संयमी कसाता है।
चौथा प्रश्न अविराधक संयमासंयमी का है। जिस समय से देशविरति को ग्रहण किया, उस समय स अवडित रूप से उसका पालन करने वाला भाराधक संयमासंबी कहलाता है। ऐसा शावक अगर देवलोक में उत्पन्न होतो जघन्य लोधर्म फल्प में और उत्ष्ट अच्युत विमान (यारहवें स्वर्ग) में उत्पन्न होता है।
इसी प्रकार विराधक संयमास यमी अगर देवगति प्राप्त करे तो जघन्य भुवन-वाली में और उत्कृष्ट ज्योतिष्क में उत्पन्न होता है।
छठा प्रश्न अशी जीचों का है। जिनके मनोलब्धि नहीं है, उन जीवों को असंशी कहते हैं। असंशी जीव काम