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सनुष्य वर्णन
यहाँ यह विचारने योग्य है कि जीव कृष्ण, नील और कापोत लेन्या से नरक गया है और उन्हीं लेश्याओं से, नरक से निकल कर तीर्थकर भी होता है ।जो लेश्याएँ नरक गति में जाने का कारण बनी थीं, वही तीर्थकर होने का भी कारण बनती हैं। इसी से यह समझा जा सकता है कि प्रत्येक लेश्या बैंकिटने कितने श्रवान्तर भेद हैं।
हे गौतम ! नरक के जीवा में तीन लेश्याएं होती हैं। विर्यच योनि के जीवों में छहों लेश्याएँ पाई जाती हैं। एकेन्द्रियों में चार लेश्याएं हो सकती हैं। पृथ्वीकाय, जलकाय और वनस्पति कार में चार लेश्याएँ होती है, तेजस्काय, वायुकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में तीन लेश्याएँ हैं।तिर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्य में छहों लेश्याएं हैं। भुवनपति और व्यन्वर के चार लेश्याएँ है ज्योतिक देवों में तेजो लेश्या है। पहले और दूसरे देवलोक में तेजो लेश्या, तीसरे से पांचवे में एन लेश्या तथा आगे के स्वर्गों में शुक्ल लेश्यां होती है। ., गौतम स्वामी, भगवान से प्रश्न करते हैं-भगवन् ! कृष्ण लश्या से शुक्ल लेश्या तक के जीवों में से कौन कम ऋद्धि वाला है और कौन किससे अधिक ऋद्धि राला है? इसके उत्तर में भगवान् ने फर्माया-कृष्ण लेश्या वाले से नील खेश्या वाला महा-ऋद्धिमान हैं। इस प्रकार सबसे अधिक ऋद्धिमान शुक्ल लेश्या वाले हैं और संबसे कम ऋद्धिमार कृष्ण लेश्या वाले हैं।