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मनुष्य वर्णन मिथ्यादृष्टि उत्पन्न हुए हों वे अल्प वेदना वाले हैं और जो अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न हुए हों वह महा वेदना वाले होते हैं, ऐसा कहना चाहिए ।
व्याख्यान-यहाँ वाण व्यन्तर, ज्योतिरिक और वैमानिक का वर्णन असुरकुमार देवों के समान ही बतलाया गया है, इनमें वेदना का भेद है।
वाण-व्यन्तर, ज्योतिपिक और वैमानिक दो प्रकार के उत्पन्न होते हैं-एक मायी मिथ्याष्टि, दूसरे अमायी सम्यग्बोष्ट । इनके शरीर का परिमाण अवगाहना के अनुसार 'भिन्न-भिन्न है। इनमें जो अल्पशरीरी है उनका श्राहार अल्प है और जो महाशरीरी है चे अधिक पुद्गलों का आहार करते हैं।
वेदना के विषय में असुरकुमारों के लिए यह कहा गया है कि जो संक्षी हैं उन्हें महावेदना और असंशी भूतों को अल्प वेदना होती है । यद्यपि व्यन्तरों का पाठ शास्त्रकार ने अलग कर दिया है किन्तु असुरकुमार और व्यन्तर के वर्णन में कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि व्यन्तरों में भी असंशिभूत जीव उत्पन्न हो सकते हैं। व्यन्तरों में संशी जीव उत्पन्न होते हैं, यह बात इसी सूत्र में आगे कही जायगी। यहां यह पाठ श्राया हैअसएणीणं जहएणणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु ।'
अर्थात्-असंझी जीव अगर देवगति में उत्पन्न हो तो जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट चान-व्यन्तरों में उत्पन्न होते हैं।