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मनुष्य-वर्णन श्रारंभ से मुक्त होना चाहिए, तथापि गफलत होने पर उसे आरंभिया क्रिया लगती है। . भगवान् ने प्रमाद के योग में लगने वाली क्रिया की भी गणना की है, फिर तेरहपंथियों के कथनानुसार अगर श्रावक में देश से भी अव्रत होता तो श्रावक में चार क्रियाएँ वतलाई गई होती। प्रमत्त संयत जो प्रारंभ करते हैं, वह परिग्रह रहित है । वे ममत्व करके प्रारंभ नहीं करते हैं । ममत्व करके प्रारंभ करने में परिग्रह की क्रिया लगती है। . . संयतासंयत अर्थात् श्रावक के तीन क्रियाएँ होती है। , असंयत सम्यग्दृष्टि के चार होती है और मिथ्यादृष्टी तथा . मिश्रदृष्टि के पाँचों ही होती है ।
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