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श्रीभगवती सूत्र
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चार्यों ने दसवें गुणस्थान तक नौ योगों की प्रवृत्ति वतलाई है । नौ योगों की प्रवृत्ति है, इस लिए वहां यह क्रिया है। जव धर्म के विषय में अपवाद होता है, अर्थात् मिथ्यावाद द्वारा धर्म पर कलंक लगाया जाता है तब अप्रमत्त संयत को भी ऐसी क्रिया करनी पड़ती है, जिससे कि धर्म पर लगाया गया कलंक दूर हो जाय । उदाहरणार्थ एक बार श्रेणिक राजा ने चेलना रानी को जैनधर्म के प्रति घृणा उत्पन्न कराने के लिए एक साधु और एक वेश्या को एक ही मकान में बंद कर दिया था। ऐसा करके श्रेणिक, चेलना रानी के हृदय में जैन साधुओं के विषय में घृणा उत्पन्न कर देना चाहता था। साधुको धर्म का, यह उपहास सह्य नहीं था । वह धर्म को इम निन्दा से बचाना चाहता था। साधारण मनुष्य की अपेक्षा राजा की वात का प्रभाव प्राधिक पड़ता है, इसलिए ऐसा करना और भी आवश्यक हो गया था।
- मुनि सोच-विचार में पड़े थे कल हल्ला मच जायगा और धर्म की बड़ी अप्रतिष्ठा होगी । मैं घर-घर कैसे कहता फिरूंगा कि मैं निर्दोष हूँ और राजा ने बलात्कार पूर्वक सुझे बंद कर दिया था। इसके सिवाय, लोग स्वभावतः आशंका• शील होते हैं । फिर राजा की यात के आगे मेरी कौन सुनेगा? इससे अच्छा तो यहां होगा कि मैं राजा का ही गुरु-चौद्ध साधु होजाऊँ। इससे सारा झगड़ा ही खत्म हो जायगा। ऐसा विचार करके मुनि ने अपनी लब्धि से राजा के गुरु का , ही भेष बना लिया । वेश्या मुनि को, राजा के गुरू के भेष में - देखकर घबराने लगी। वह सुंनि से क्षमा याचना करने लगी।