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________________ श्रीभगवती सूत्र [ ६३० महाशरीर वाले मनुष्य बहुत पुद्गलों का श्राहार करते हैं, परन्तु कदाचित् आहार करते हैं । महाशरीरी नारकी चार-चार श्राहार करते हैं लेकिन महाशरीर मनुष्य कभी-कभी श्राहार करते हैं। यहां महा शरीर वाले मनुष्यों से देयकुर और उत्तरकुर के भोग-भूमिज मनुष्य लेने चाहिए । उनका शरीर तीन गाउ का होता है और श्राहार अष्टम भक्त होता है अर्थात् तीन दिन में एक यार आहार करते हैं। इसलिए उन्हें कदाचित् प्राहार करने वाला कहा है। अल्प शरीर वाले मनुष्य घोड़े पुद्गला का श्राहार करते हैं, परन्तु बार-बार करते हैं। - शका-नरक के जीव जिन पुद्गलों का ग्राहार करते हैं वे निस्तार और स्थूल होते हैं, अतएका महाशरीर नारकों को बहुत पुद्गलों का आहार करना पड़ता है, मगर देवकुंरू और उत्तरमुरु के मनुष्य सारयुक्त पुद्गलो. का आहार करते हैं. अतएव उन्हें अधिक पुद्गलों की आवश्यकता नहीं होनी "चाहिए । तथापि यहाँ बहुत पुद्गलों का श्राहार बतलाया गया है ? जैले पाँच सौ तोले की मिठास रखने वाली एक 'तोला शकर में बहुत पुद्गल रहते हैं, उसी प्रकार देवकुत और उत्तरमुरु के जुगलिये जोपाहार करते हैं, उसमें सारभूत 'पुद्गल अधिक हैं। इसलिए उन्हें अल्पाहारी कहना चाहिए। समाधान-जिस प्रकार एक तोला चांदी की अपेक्षा एक तोला सोने में अधिक पुद्गल होते हैं, दोनों का तोत वरावर होने पर भी-दोनों के युद्नंतों में न्यूनाधिकता है, और यही कारण है कि एक तोला सोना-जितना फ़ल सफ्ता है'एकतोला सोने से जितने वर्तनों पर मुलम्मा किया जा सकता
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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