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________________ [ ६६ ] भगवती सूत्र श्रथवा - अल्पशरीरी का अल्पाहार और अल्पश्वास तथा कदाचित् आहार और कदाचित् श्वाम ग्रन्तराल की अपेक्षा से कहा है अल्प शरीर वालों के आहार और श्वासोच्छ्वान में अन्तराल बहुत पड़ जाता है, इस अपेक्षा में यह कथन किया है। अन्तराल का अर्थ है-चीच या श्रांरा । एक आहार और दूसरे आहार के बीच का समय अन्तराल, श्रांतरा व्यवधान. या अन्तर कहलाता है । यद्यपि महाशरीर वाले के आहार में भी अन्तराल हैएक दिन का अन्तर पड़ता है, परन्तु वह अन्तर अत्यल्प है, इसलिए नगण्य है | नगण्य होने के कारण ही अल्प शरीरी की अपेक्षा महाशरीरी का आहार अभीक्ष्ण आहार कहा है । .. यह वातं श्रागम से भी सिद्ध है कि महाशरीर वाले का आहार वारंवार होता है और अल्पशरीर वाले का हार, अन्तरालबड़ा होने से बार-बार नहीं होता । यथा- प्रथम देवलोक के देव का शरीर सात हाथ का है। उनका आहार दो हजार वर्ष के अन्तर से और उच्छ्वास दो पक्ष के अन्तर से होता है । . अनुत्तर विमान के देव का शरीर एक हाथ का है और उनका - श्राहार तैंतीस हजार वर्ष के अन्तर से तथा श्वासोच्छ्वास तैतीस पक्ष के अन्तर से होता है इस अपेक्षा से, प्रथम ... देवलोक के देवों का शरीर बड़ा है इसलिए वे आहार और उच्छ्वास भी बार-वार लेते हैं । इनकी अपेक्षा अनुत्तर विमान के देवों का शरीर छोटा है, इस लिए वे आहार और उच्छ्वास भी अल्प लेते हैं । यही बात असुरकुमारों के विषय में है । - - = 23 अथवा पर्याप्त अवस्था में महाशरीरं वाले असुरकुंमार लोमाहार की अपेक्षा बार-बार श्राहार लेते हैं और अपर्याप्त
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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