SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीभगवती सूत्र [ ६०४ ] इस वाक्य में 'जे' और 'ते' पद श्राये हैं । इनके संबंध में यह आशंका की जा सकती है कि अकेले 'जे' कह देने से काम चल सकता था, फिर 'ते' कहने की क्या श्रावश्यकता थी ? इस शंका का उत्तर यह है कि भाषा के सौन्दर्य के लिए 'ते' पद का प्रयोग किया गया है । भगवान् फर्माते हैं - हे गौतम! जिसका शरीर छोटा होता है, वह श्रहार कम लेता है और श्वासोच्छ्वास में भी कम पुद्गलों को ही ग्रहण करता है । इसके सिवाय कदाचित् आहार लेता है और कदाचित् नहीं भी लेता । शंका- पहले उद्देशक में नारकी जीवों के वर्णन में, कहा गया है कि नारकी जीव निरन्तर आहार करते हैं । यहाँ कहा जा रहा है कि कदाचित् श्रहार करते हैं, कदाचित् नहीं करते । दोनों कथन परस्पर विरोधी हैं । तव इनमें से किसे सत्य समझा जाय ? समाधान - यह सारा कथन बड़े शरीर की अपेक्षा से है । इसके सिवाय जय जीव अपर्याप्त शरीर में होते हैं, तत्र लोम् - आहार की अपेक्षा से श्राहार नहीं करते हैं, पर्याप्त शरीर वाले होने पर आहार करते हैं। इसी दृष्टि कोण से यहकहा गया है कि कदाचित् आहार करते हैं और कदाचित् श्राहार नहीं करते हैं । उपर्युकं सब कथन का श्राशय यह है कि सब नंरक के जीव न तो समान आहार करते हैं, न समान श्वासोच्छ्वासं ही लेते हैं, क्योंकि उनका शरीर अपेक्षाकृत छोटा बड़ा है ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy