________________
[६०१]
नारकी जीव समान हैं? शरीर वाले होते हैं । जब उनके शरीर में भिन्नता है तो आहार आदि में भिन्नता होना स्वभाविक है।
बड़ा और छोटा शरीर अपेक्षा से है। छोटे की अपेक्षा कोई वस्तु बड़ी कहलाती है और बड़ी की अपेक्षा छोटी कहलाती है । नारकियों का छोटे से छोटा शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना है और.बड़े से बड़ा पाँच सौ धनुष बराबर है। यह दोनों प्रकार के शरीर भविधारणाय शरीर की अपेक्षा से कहे गये हैं। उत्तर विक्रिया की अपेक्षा शरीर के परिमाण में अन्तर पड़ जाता है। सारांश यह है कि पूर्वोक्त परिमाण शरीर का खाभाविक परिमाण है।
उत्तरचक्रिय शरीर अर्थात् .इच्छानुसार बड़ा या छोटा बनाया हुआ शरीर । जब इच्छापूर्वक बड़ा या छोटा शरीर बनाया जाता है तब यह छोटे से छोटा अंगुल के संख्यातवें भाग तक हो सकता है, इससे अधिक छोटा नहीं हो सकता। इसी प्रकार बड़े से बड़ा एक हजार धनुष का हो सकता है, इससे ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता।
गौतम स्वामी ने जो प्रश्न किया है, उसमें पहले आहार की बात पूछी है, उसके बाद शरीर की बात पूछी है। मगर भगवान् ने पहले शरीर के सम्बन्ध में निरुपणं किया है। इस व्यतिक्रम का कारण यह है कि शरीर का परिमाण, बताये विना आहार आदि के विषय में ठीक.और सुबोध उत्तर नहीं दिया जा सकता था। शरीर का परिमाण बता देने पर ही आहार, श्वासोच्छवास श्रादि का ठीक परिमाण घतलाया जा सकता था। इसी कारण शरीर की बात बाद में पूछने पर
.