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________________ श्रीभगवती सूत्र [५६८ ] गुच्छितम् , यमलितम्, युगलितम्, विनमितम्, प्रणमितम्, सुविभक्तपिण्डी-मञ्जयवतंसकधरं श्रिया अतीवातीवोभशोभमानम्-उपशोभमानं तिष्ठति, एवमेव तेषां वानव्यन्तराणां देवानां देवलोका जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिकः, टस्कृष्टेन पल्योपमस्थितिकैर्वहुमि नव्यन्तरेदेवैः तद्देवीभिश्च श्राकीर्णाः, विकीर्णाः, उपरतीर्णाः संस्तार्णाः, स्कूटाः, अवगादगाढ़ाः, चिया अतीवातीवोपशोभमाना उपशोभमानास्तिष्टन्ति । ईशा गौतम! तेषां च वानव्यन्तरदेवानां देवलोकाः प्रज्ञप्ताः, तत तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जीवोऽसंयतो यावद-देवः स्यात् । मूलार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! उन वान-व्यन्तर देवों के देवलोक किस प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर-हे गौतम ! जैसे यहां मनुष्यलोक में सदा फूला हुआ, मंयूरित-पुष्प-विशेष वाला-मौर वाला, लवकितकॉपलों वाला, फूलों के गुच्छों वाला, लता-समूह वाला, पत्नों के गुच्छों वाला, यमल-समान श्रेणी के वृक्षों वाला, युगल वृत्तों वाला, फल-फूल के भार से नमा हुआ, फल'फुल के भार से नमने की शुरुआत वाला, विभिन्न प्रकार की बालों और मंजरियों रूपी मुकुटों को धारण करने वाला, अशोकवन, सप्तपर्णवन, चम्पाका वन, आमोंका वन. तिलक वृक्षों का वन, तूंचे की लताओं का वन, वड़ वृक्षों का वन, छत्रौध वन, अशन वृक्षों का वन, सन का वन, अलसी के पौधों का वन, कुसुंब वृक्षों का वन, सफेद सरसों
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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