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श्री भगवती सूत्र
[Yes]
तीसरा विशेषण - ' दीहमद्धं ' है । अव का अर्थ मार्ग है, और दीह का अर्थ दीर्घ ( लम्बा ) है । जिसका मार्ग लम्बा हो, वह 'दीहमद्ध' कहलाता है । अथवा दीर्घकाल वाले को 'दीमद्ध' कहते हैं ।
चौथा विशेपण 'चाउरंत' है । चाउरंत का अर्थ हैचार विभाग वाला | देवगति, मनुष्यगति, तिर्यञ्चगति श्रीर नरकगति, इस प्रकार चार विभाग जिसमें हैं वह (संसार) चाउरंत ( चातुरन्तक ) कहलाता है ।
इस प्रकार के विशेषणों वाले संसार- कान्तार में अर्थात् भव-वन में असंवृत अनगार बार-बार परिभ्रमण करता है ।
इस लव का आशय यह है कि असंवृत अनगार ऐसे संसार रूपी वन में भ्रमण करता है, जिसमें दुःख ही दुःख है, जिसके अन्त का कोई प्रमाण नहीं है, जिसकी समाप्ति का पता नहीं है, जिसका मार्ग लम्बा है और जिसके चार गति रूप चार विभाग हैं ।