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श्रीभगवती सूत्र
[ ५१२. ]
यह हुई संयत की बात । असंयत के विषय में भग वान कहते हैं - असंयतों में जो अविरति हैं, वे आत्मारंभी भी हैं, परारंभी भी हैं और उभयारंभी भी हैं । वे श्रारंभी नहीं हैं । संयत में भले ही शुभ योग की प्रवृत्ति हो जाय, तब भी त्याग - दशा में होने वाली सावधानी उसमें नहीं है, श्रतएव वह अनारंभी नहीं है. !
गौतम स्वामी, भगवान से कहते है कि हे देवाधिदेव ! आपकी अमृतवाणी सुनने से मुझे तृप्ति नहीं होती, इसलिए: मैं फिर प्रश्न करता हूँ । भगवान् ने भी गौतम स्वामी को लक्ष्य करके बाल जीवों के कल्याण के लिए. सब बातें कही. हैं। बड़े आदमी को अमृत मिलता है तो वह सब को वांट: देता है। इस नियम के अनुसार गौतम स्वामी ने जो प्रश्न किये हैं, वे सारे संसार के लिए हैं।