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________________ श्रीभगवती सूत्र . [५००] आत्मा का प्रारम्भ करे वह अथवा अपने प्रात्मा की प्रेरणा से जो प्रारम्भ करे वह आत्मारम्भी है। मतलब यह है कि स्वेच्छासे जो प्रारम्भ करता है वह आत्मारंभी कहलाता है। इसी प्रकार परारंभी के भी दो अर्थ है । प्रथम दूसरे के श्रात्मा को कष्ट पहुंचावे वह अथवा दूसरे की प्रेरणा से प्रारंभ कर वह परारंभी है। . अपने आत्मा का भी प्रारंभ करे और दूसरे के प्रात्मा का भी आरंभ करे, इसी प्रकार दूसरे की प्रेरणा तथा अपनी इच्छा से जो प्रारंभ करे वह उभयारंभी कहलाता है। आत्मा कई वार काम, क्रोध शादि आन्तरिक विकारों .. के वश होकर कार्य करता है, कई वार दूसरे के दवाव से काम करता है और कभी-कभी दोनों कारणों से कार्य करता है। इसी कारण प्रारंभी के तीन भेद किये गये हैं। . गौतम स्वामी के इसी प्रश्न का एक भाग यह है कि, क्या ऐसे जीव भी हैं, जो न आत्मारंभी हैं, न परारम्भी है, न उभयारंभी हैं ? क्या कोई निरारंभी भी हैं ? यह प्रश्न इसलिए किया गया है कि ठाणांग सूत्र में आत्मा को एक * कहा है। अतएव या तो सभी प्रारंभी हो या सभी निरारंभी हों। इसके अतिरिक्त मूल रूप में आत्मा अंरूपी है । सो क्या प्रात्मा प्रारंभ करता है या सांख्य के कथनानुसार प्रकृति आरंभ करती है और आत्मा भोगता है.! इत्यादि बातों को लक्ष्य में रखकर ही यह प्रश्न किया गया है। .. * एगे आया-ठाणांग सूत्र, प्रथम ठाणा प्रथम सूत्र । .
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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