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श्रीभगवती सूत्र
[२६४] मूलार्थ हे भगवन् ! जो चल रहा हो वह चला, जो उदीरा जा रहा हो वह उदीरा गया, जो वेदा जा रहा हो वह वेदा गया, जो नष्ट हो रहा हो वह नष्ट हुआ, जो छिद्र रहा है वह छिदा, जो भिद रहा है वह भिदा, जो जल रहा है वह जला, जो मर रहा है वह मंरा, जो खिर रहा है वह खिरा? इस प्रकार कहा जा सकता है ? (३)
व्याख्या-गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से उक्त नौ प्रश्न किये। यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि गौतम स्वामी ने इन प्रश्नों में पहले 'चलमाणे चलिए'? प्रश्न ही क्यों किया ? दूसरा प्रश्न पहले क्यों नहीं किया इस प्रश्न का समाधान यह है।
पुरुपार्थ चार हैं। उनमें मोक्ष पुरुषार्थ मुख्य हैं। जितने भी पुरुषार्थ हैं, वह सव मोक्ष के लिए ही होने चाहिए । और कोई काम ऐसे पुरुषार्थ का नहीं हैं, जैसे पुरुपार्थ का काम मोक्ष प्राप्त करने का है । अतएव सब प्राणियों को उचित है कि वे दूसरे काम छोड़ कर मोक्ष प्राप्ति के काम में लगें। __ इस प्रकार मोक्ष प्राप्त करना सब कामों में श्रेष्ठ है। मोक्ष-प्राप्ति एक कार्य है तो उसका कारण भी अवश्य होना चाहिए, क्योंकि विना कारण के कार्य नहीं हो सकता। विना कारण के कार्य का होना मान लेने से बड़ी गड़बड़ी मच. जायगी । अतएव प्राकृतिक नियम के अनुसार यही मानमा उचित है कि कारण के होने पर ही कार्य होता है। इस नियम से जव मोक्ष साध्य है तो उसका साधन भी अवश्य । होना चाहिए। .