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श्रीभगवती सूत्र
१४६६ घाणिदिय-जिभिदिय फासिंदिय-चेमायाए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। . . संस्कृत-छाया-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां नानात्वं स्थिती यावत् अनेकानि च भागसहस्राणि अनाघ्रायमाणानि, अनास्वाद्यमानानि, अस्पृश्यमानानि विध्वंसमागच्छन्ति ।
प्रश्न-एतेषां भगवन् ! पुद्गलानामनाघ्रायमाणानां ३ पृच्छा।
उत्तर--गौतम ! सर्वस्तोका पुद्गला अनात्रायमाणाः, अनास्वाचमाना अनन्तगुणाः, अस्पय॑माना अनन्तगुणाः । त्रीन्द्रियाणां प्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियविमात्रया भूयो भूयः परिणमन्ति ।
मूलार्थ---तीन इन्द्रिय वाले और चार इन्द्रिय वाले जीवों की स्थिति में भेद है, शेष सब पहले की भाँति है । यावत् अनेक हजार भाग विना सूंघे, विना चख, विना स्पर्श ही नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न- भगवन् ! इन नहीं सूंघे, नहीं चखे और नहीं स्पर्श किये हुए पुद्गलों में कौन किससे थोड़ा, बहुत, तुल्य , या विशेषाधिक है ?