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________________ तृतीय अविकेट : जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव तीर्थंकर स्वामी ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत का जन्म वर्णन ही कवि का अभीष्ट विषय है। काव्य के आरम्भ में अयोध्या नगरी और उसके निवासियों की सम्पन्नता, धर्मनिष्ठा और शीलता का कवित्व पूर्ण शैली में प्रभावपूर्ण वर्णन किया गया है। कुबेर ने अपनी प्रिय नगरी अलका की सहचरी के रूप में अयोध्या नगरी का निर्माण किया था। अयोध्या के निवेश से पूर्व, जब यह देश इक्ष्वाकु भूमि के नाम से प्रसिद्ध था, ऋषभदेव राजा नाभि के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे। इसी सर्ग के शेषांश में आदिदेव ऋषभ के शैशव, यौवन, रूपसम्पदा तथा यशः प्रसार का मनोरम चित्रण किया गया है। दूसरे सर्ग में इन्द्र ने नारद और तुम्वरू से अवगत होकर कि ऋषभदेव अविवाहित है, उन्हें वैवाहिक जीवन में प्रवृत्त कराने के लिए तत्काल अयोध्या प्रस्थान करते है। इसी सर्ग में इन्द्र की यात्रा' और अष्टापद पर्वत का मनोरम चित्रण है। सर्ग तीन में इन्द्र भिन्न-भिन्न युक्तियों से ऋषभदेव को गार्हस्थ्य जीवन धारण करने के लिए प्रेरित करते है और उनके मौन रहने पर इन्द्र उनकी सगी बहनों सुमङ्गला और सुनन्दा से उनका विवाह निश्चित करते है। इन्द्र देववृन्द को विवाह के आयोजन का आदेश देते है। इसी सर्ग में वधुओं की देवियों द्वारा विवाह पूर्व सज्जा के उपरान्त ऋषभदेव के वधू गृह को प्रस्थान का वर्णन है। सम्पूर्ण देवता समूह विवाहोत्सव ८६ ।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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