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द्वितीय ि
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जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं
सेवा और जीवनयापन में बड़ी प्रगति और सफलता मिली, गुजरात के चालुक्य नरेशों, विशेषकर सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल के आश्रय में जैनधर्म ने अपने प्रतापी दिन देखे और उस युग में कला और साहित्य के निर्माण में जैनों के योगदान ने गुजरात को महान् बना दिया, जो आज भी है। इस समय से गुजरात में साहित्यिक क्रिया-कलाप का एक युग प्रारम्भ हुआ और इसका श्रेय हेमचन्द्र और उनके बाद होने वाले अनेक जैन कवियों को है । राजदरबारों में जैनाचार्यों और विद्वानों के त्यागी जीवन और उसके साथ विद्योपासना की भी बड़ी प्रतिष्ठा की जाती थी और अनेक राजवंशी लोग भी उनके भक्त और उपासक होने में अपना कल्याण समझते थे।
मुस्लिम शासन काल में यद्यपि जैनों के मन्दिर यत्र-तत्र नष्ट किये गये पर सभवतः उतने अधिक परिमाण में नहीं। उस काल में भी जैनाचार्यों और जैन गृहस्थों की प्रतिष्ठा कायम थी। दिल्ली का बादशाह मुहम्मद तुगलक जिनप्रभसूरि का बड़ा समादर करता था। मुगल सम्राट अकबर और जहाँगीर ने आचार्य हीरविजय, शान्तिचन्द्र और भानुचन्द्र के उपदेशों से प्रभावित हो जीवरक्षा के लिए फरमान निकाले। अकबर ने आचार्य हीरविजय जी को जगदगुरु की उपाधि दी थी और उनके अनुरोध पर पज्जूसण के जैन वार्षिकोत्सव के समय उन स्थानों में प्राणिहिंसा की मनाही कर दी जहाँ कि जैन लोग निवास करते थे।
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