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________________ द्वितीय परिच्छेद : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा अहबाप जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं, मेरुतुङ्गाचार्य के पूर्व विद्यमान थे। जैनकुमारसम्भव के प्रत्येक सर्ग की टीका के अन्त में कवि के प्रिय शिष्य धर्मशेखर सूरि ने जयशेखर सूरि की साहित्यिक उपलब्धियों का जो संकेत किया है, उससे विदित होता है कि जयशेखर सूरि काव्य सरिता के ‘उद्गम स्थल' तथा 'कविधरा' के मुकुट थे। उनकी कवित्व शक्ति और काव्य कौशल को देखते हुए धर्मशेखर सूरि का यह कथन सूरिः श्री जयशेखरः कविघटा कोटीरहीरच्छविः। धर्मिल्लादिमहाकवित्वकल ना कल्लोलिनीसानुमान।। गुरुशक्ति से उत्प्रेरित श्रद्धांजलि मात्र नहीं है। धम्मिलकुमारचरित की प्रशस्ति में जयशेखर सूरि ने स्वयं 'कविचक्रधर' विशेषण द्वारा अपनी प्रबल कवित्वशक्ति को रेखांकित किया है। धम्मिलकुमारचरित का रचनाकाल संवत् १४६२ तक जयशेखर की स्थिति असन्दिग्ध है। महाकवि जयशेखर सूरि द्वारा उल्लिखित ग्रन्थ श्री स्तंभतीर्थ श्रीमद्न्चलगच्छनभोमण्डलर्मातण्डेन सकलविद्वतवर्ग मानसचकोर सुधारकरेण यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहार्ध्यानधारणासमाध्यात्मकाण्ठाङ्ग परिकलितात्मना निजप्रतिभाधारी कृतामृताशनासूरिणा भारतीप्रदत्तवरेण प्रबोधचिन्तामणि, उपदेशचिन्तामणि, धम्मिलकुमारचरित सच्छास्त्र प्रणेता प्रातः स्मरणीय नाधेयेन पूज्यपादारविन्दयुगलेन तत्र भवता परमगुरु वर्णेय श्री जयशेखरसूरि विरचितं जैन-कुमारसम्भव महाकाव्यम्।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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