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प्रथम अस्मेिद: जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
५८.
हितोपदेश-१-२५
कुमार संभव- ३/१२
५९. ६०. ६१.
आ०म० से- आनन्दमठ से- वंकिम चन्द्र चटर्जी।
काव्यादर्श- १/११, अग्निपुराण, पृ० ३६३, सरस्वती कण्ठाभरण- २/१८ वाग्भटीय काव्या०
अध्याय १
काव्यालंकार, पृ० ९, का०वा०सू०वृ०- १/२६, सा०द०-६/३१३
३.
अग्निपुराण, पृ०२६, काव्यादर्श नृ०-६, भ०म०, पृ० १८८, सा० द०-६-३३०
काव्यादर्श, पृ० ४, सान्द०-६/३१४, ६-३३६ ६५. गद्यपद्यमयी साङ्का सोच्छ्वासा चम्पक:- काव्यानुशासन, पृ० ४०८
काव्यादर्श-पृ० ८। का०द०प०८। काव्या० द०, पृ०४
अग्निपुराण, पृ० २९
सान्द०- षष्ठ परिच्छेद।।
९.
काव्यप्रकाश-प्र०उ०सू०-२
वही, प्र०उ०सू- ३१
वही, प्र०उ०सू-४
ध्वन्यालोक, प्र० अध्याय का०- २१
३.
सान्द०-६/१, काव्यानुशासन अ० पा०, पृ० ३७९, श्रृंगार प्रकाश अ०११, ना० दर्पण, पृ० १२
दृश्य श्रव्यं च- यद्भवेत्- ना०शा० १/११
भामह-काव्यालंकार, पृ०१०
७६.
सद्रट- काव्यालंकार, पृ० ४१३
७७.
भोज- काव्यं शास्त्रेतिहासौ च काव्यशास्त्रं तथैव च।