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प्रथम महिलछेद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
आचार्य विश्वनाथ का महाकाव्य लक्षण
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार- महाकाव्य का नायक धीरोदात्तादि गुणों से युक्त, सदबंशीय, क्षत्रिय, या देवता होता है। सम्पूर्ण रसों की सत्ता (व्यापकता को सीमित करते हुए उन्होनें केवल शृगार वीर और शान्त रसों में से किसी एक रस की प्रधानता (अङ्गी) को स्वीकार किया है। विश्वनाथ से पूर्व किसी भी आचार्य ने सर्गो की संख्या निर्धारित नही की थी और दण्डी ने केवल सगैकनतिविष्तीर्ण कहा था। किन्तु विश्वनाथ ने इसे सीमित करके महाकाव्य को कम से कम आठ सर्गो का होना आवश्यक माना है
और सर्गो के स्वरूप न तो बहुत बड़े न ही अधिक छोटे हों, स्वीकार किया है। प्रकृति चित्रण में विश्वनाथ ने पूर्वाचार्यों के कथन को ही दुहराया है और महाकाव्य में नाटकीयता लाने तथा रस भाव निरन्तरता को स्थिर करने के लिए सर्गान्त में भावी (अग्रिम) सर्ग की कथा का संकेत होना स्वीकार किया है।१२३
सर्गवन्धो महाकाव्यं तत्रैको नामकः सुरः। सद्वंशः----- अङ्गानि सर्वेऽपि---------- इतिहासो----------------।।
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चत्वारस्तस्थ-------------
आदौ-----------------।। क्वचिन्मन्द खला--------।
• एकवृत्त---------------||