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प्रथम महिलेद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
नायिकां नायकोऽस्मिन्नीहते इतीहामृगः।११५ आचार्य विश्वनाथ के अनुसार इस रुपक में नायक मृग के तुल्य इच्छा करता है।११६ आचार्य रामचन्द(१७ ने अभिनवगुप्त की व्युत्पत्ति की शब्दावली को ही अपनाया है।
महाकाव्य
शास्त्रीय ग्रन्थों में महाकाव्य का लक्षण प्राप्त नहीं होता है। कुछ प्रमुख अलंकारिकों ने अपने-अपने लाक्षणिक ग्रन्थों में महाकाव्य के लक्षणों का विस्तार-पूर्वक विवेचन किया हैं इनके द्वारा प्रतिपादित महाकाव्यों के स्वरूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इन अलङ्कारिकों ने वाल्मीकि कृत 'रामायण' और कालीदास के दोनों महाकाव्यों 'रघुवंश और कुमारसम्भव' को दृष्टिगत करके ही 'महाकाव्य' का लक्षण प्रस्तुत किया है। आचार्य भामह ने सर्वप्रथम अपने काव्यालंकार में महाकाव्य का लक्षण किया है। उसका लक्षण संक्षिप्त होते हुए भी महाकाव्य के स्वरूप पर पूर्ण प्रकाश डालने में समर्थ है। संक्षिप्तता उनके इस महाकाव्य लक्षण की विशेषता है और महाकाव्य के समस्त तत्वों का समावेश उसकी उपदियता।
भामह कृत महाकाव्य के आवश्यक तत्त्व ये है-११८ १. सर्गवद्धता २. महान और गंभीर विषय ३. उदात्तनायक ४. चतुवर्ग का प्रतिपादन ५. नायक का अभ्युदय ६. सदाश्रियत्व ७. पञ्चसन्धि नाटकीय गुण ८. लोक स्वभाव और विविध रसों की प्रतीति ९. समृद्धि- ऋतुवर्णन आदि। ___भामह प्रतिपादित महाकाव्य लक्षण को देखने से यह विदित होता है कि उन्होने महाकाव्य को ‘सर्गवद्ध' कहकर महाकाव्य के वाह्य तत्व की ओर
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