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प्रथम परिच्छेद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
४. प्रहसन
'प्र' उपसर्ग पूर्वक 'हस' धातु से 'ल्युट' प्रत्यय करने पर प्रहसन पर की निष्पत्ति होती है जिसका अर्थ है : अट्टहास, जोर की हँसी, उपहास आदि। इस रूपक भेद का प्रहसन नाम इसलिए रखा गया है, कि इसके द्वारा सहृदयों अथवा पाठकों के हृदय में हास्य रस की अनुभूति होती है।०१
प्रतापरुद्रीय की 'रत्नापणा' टीका के रचयिता की दृष्टि से भी इस रूपक भेद का प्रहसन नाम इसलिए है, कि उसमें हास्य वचन की प्रचुरता रहती है।
१.
रज्जनाप्रधानं हास्य प्राय प्रहसनं लक्षयहि, तथा प्रहसनं रूपं हास्य रस प्रधानमित्यर्थः।।
२.
हास्य वचः प्रचुरत्वादिदं प्रहसनमुच्यते-प्रतापरुदीयम् प्र० ८९
५. डिम
'डिम' धातु से 'क' प्रत्यय जोड़ने पर 'डिम' पद निष्पन्न होता है। 'डिम' पद का निर्वचन करते हुए अभिनवगुप्त ने कहा है कि 'डिम' डिम्ब तथा विद्रव, में सब पर्यायवाची शब्द है जिसका अर्थ होता है- भय, पलायन, झगड़ा आदि।०२
आचार्य धनिक ने “डिम सङ्घाते" धातु से डिम की व्युत्पत्ति मानी है। अतः उनके अनुसार दिन का अभिप्राय इस रूपक भेद से हैं, जिसमें नायक का सङघात 'हिंसक' व्यापार हो।