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________________ परिच्छेद्र : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि अध्याप कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन/ सप्तम् पि अङ्गुलीभिदिव केश सञ्चयं सन्नि गृह्य तिमिरं मरीचिभिः । कुश्मलीकृत सरोज लोचनं चुम्वतीव रजनीमुखं शशी ।। ६५ तारिकाओं के वर्णन में कवि का अनुमान है कि तारिकाएं उन नव वधुओं के समान हैं, जो पहली बार संभोग के डर से काँपती हुई अपने पति के पास जा रही हो एवं चारुमुखी योगतारया युज्यते तरलविश्वयाराशि। साध्वसादुपगतप्रकम्पया कन्ययेव नव दीक्षया वरः ।। ६६ इस प्रकार महाकाव्यों में प्रकृति का मानवीयकरण करके नानाविधि विस्तृत वर्णन किया गया है। उन सभी का उल्लेख न तो, यहाँ अभीष्ट है और न ही सम्भव है। उपयुक्त कुछ प्रमुख प्राकृतिक दृष्यों का सूक्ष्मतः अवलोकन करने के उपरान्त स्पष्ट होता है कि यद्यपि जैनकुमारसम्भव में कवि ने प्रकृति नाना रूपों का भव्य चित्रण किया है तथापि वे चित्र कालिदास के प्राकृतिक चित्रों की तुलना में शुष्क और नीरस है तथा कालिदास द्वारा निरूपित प्रकृति - वर्णन अनायास ही मानव हृदय को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है। जहाँ तक प्रकृति चित्रण के स्वरूप का प्रश्न है, दोनों ही महाकाव्यों में प्रकृति कहीं यथावत वर्णित है तो कहीं आलम्बन में और कहीं-कहीं उद्दीपन २४४
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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