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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
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स्कन्धात्प्रभत्येव सपल्लवानि। पादेन पापैक्षत सुन्दरीणां
सम्पर्कमासिज्जितनूपुरेण।। स्पष्ट है कि कालिदास कृत वसन्त वर्णन की यह झांकी जयशेखर कृत षड-ऋतु की अपेक्षा गम्भीर, मौलिक तथा अतीव सुन्दर है। जैनकुमारसम्भव के दसवें सर्ग के. ६ पद्यों में प्रभात वर्णन प्रकृति चित्रण की दृष्टि से सर्वोत्तम अंश है जयशेखर ने प्रकृति की नाना चेष्टा को अपनी प्रतिभा की तूलिका से उजागर किया है
लक्ष्मी तथाम्वरमथात्मपरिच्छं च मुञ्चन्तमागमितयोगमिवास्तकामम्। दृष्टवेशमल्परुचि मुज्झति कामिनीव
तं यामिनी प्रसरमम्बुरुहाक्षि पश्य।। अर्थात् चन्द्रमा ने रात भर अपनी प्रिया से रमण किया है। इस स्वच्छन्द काम के लिए उसकी कान्ति मलान हो गयी है। प्रतिद्वन्दी सूर्य के भ्रम से वह अपना समूचा वैभव तथा परिवार छोड़कर नंगा भाग गया है। उसकी निष्कामता को देखकर पश्चली की तरह यामिनी ने उसे निर्दयता पूर्वक ठुकरा दिया है। उसे भागते देख सभी तारे एक-एक करके बुझ गये है। वे टिक भी कैसे सकते है, जबकि उनका अधिपति चन्द्रमा ही भाग गया है
अवशमनशद्भीत शीतधुति स निरम्वरः खरतरकरे ध्वस्यद्धान्ते रनावुदयोन्मुखे।