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प्रथम महिलपेद: जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
संक्षेपाद् वाक्यमिष्टार्थवच्छिना पदावली। काव्यं स्फुरदंलङ्कारं गुणवद् दोषवर्जितम् ।।३२
आचार्य वामन ने काव्य लक्षण के सम्बन्ध में इस प्रकार अपना मत व्यक्त किया है
काव्यशब्दोदयं गुणलङ्कारसंस्कृतयोः शब्दार्थर्योवर्तते३
आचार्य भामह प्रदत्त काव्य परिभाषा
शब्दार्थों सहितौ काव्यं गद्य-पद्यं च द्विधा
आचार्य रुद्रट की काव्य परिभाषा इस प्रकार है
शब्दार्थो काव्यम्। आचार्य दण्डी ने काव्य-स्वरूप को इस प्रकार व्यक्त किया है
शरीर तावदिष्टार्थ-व्यवच्छिन्ना पदावली।३६
आचार्य कुन्तक ने रस को काव्य की आत्मा स्वीकार करते हुए काव्य का लक्षण बताते है
शब्दार्थों सहितौ वक्रकवि व्यापारशालिनी। वन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणी।।७
आचार्य मम्मट का काव्य लक्षण न केवल अन्य काव्यशास्त्रियों के काव्य लक्षणों से (पर्याप्त) भिन्न है, वरन् अपनी मौलिकता एवं स्पष्टता के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय भी है। उनका काव्य लक्षण इस प्रकार है