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इन महाकाव्यों के तुलनात्मक अध्ययन के पूर्व इनकी मूल प्रवृत्ति अर्थात् जैन महाकाव्य एवं संस्कृत महाकाव्य के विषय में संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक
है।
जैन महाकाव्य एवं संस्कृत महाकाव्य की समानताएं -
(१) जैन महाकाव्य तथा संस्कृत महाकाव्य की प्रक्रिया लगभग समान है।
(२) दोनों ही कवि प्राकृतिक दृश्यों से प्रभावित होकर अपनी भावभंगिमा अभिव्यक्त करते है— नदी, पर्वत, सरोवर, सूर्य-चन्द्र आदि का अंकन समान मात्रा में उभयत्र उपलब्ध होता है।
परन्तु मान्यता, आधार तथा उद्देश्य को लेकर इनमें पार्थक्य भी है जो इस प्रकार है
(i) संस्कृत महाकाव्य वर्णाश्रम की आधार शिला पर प्रतिष्ठित है और वह धर्म को मान्यता प्रदान करता है। जैन महाकाव्यों में इस मान्यता को कम महत्त्व दिया गया है। संस्कृत काव्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र इन चातुर्वर्ण्य से गठित समाज चित्रित है। जैन महाकाव्य इसे स्वीकार नहीं करते प्रत्युत मुनि, आर्थिका श्रावक तथा श्राविका द्वारा गठित समाज ही उन्हें मान्य है। जातिवाद के लिए जैन साहित्य में कोई स्थान नहीं है।
(ii) संस्कृत महाकाव्यों का नायक उदात्त - चरित्र राजा होता है। देवता भी संस्कृत महाकाव्य के नायक हो सकते है किन्तु जैन महाकाव्यों में जैन धर्म के उपदेष्टा तीर्थंकर पुण्य-पुरुष, धार्मिक कार्यों द्वारा उपकारी