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________________ षष्ठ पतिरछेद : जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा स्वामी ऋषभदेव द्वारा सुमंगला के स्वप्नों के कथन में कवि ने उदात्त कल्पना किया है- जैसा कि ऋषभदेव द्वारा स्वप्न फलों के कथन में दृष्टिगत होता है दिगन्त देशान्तरसा जिगीषया, ऽभिषेणयिप्यन्तमवेत्य तेऽङ्गजम्। प्रहीयते स्म प्रथमं दिशां गजः प्रिये किमैरावत एष संधये।।३८ यदक्षतश्रीवृषभो निरीक्षतः, क्षितौ चतुर्भिश्चरणैः प्रतिष्ठितः। महारथाओसरतां गतस्तत, स्तवाङ्गभूर्वीरधुरां धरिष्यति।।३९ द्विपद्विषो वीक्षणतोऽवनीगता ङ्गिनो मृगीकृत्य महावलानपि न नेतृतामाप्स्यति न त्वदङ्गजः, प्रघोर्षतोंऽतर्ध्वनयन्महीभृतः।। यन्दिरा सुन्दरि वीक्षिता ततः स्त्रियो नदीनप्रभवा अवाप्स्यति। कलाभृदिष्टः कमलंगताः परः २०१
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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