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प्रथम सहिद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
योजित किया है। शारदातनय के भाव प्रकाशन' ग्रन्थ में नाट्यशास्त्र पर रचे गये भगवान शंकर के 'योगमाला' नामक ग्रन्थ का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि 'योगमाला संहिता' में भगवान शंकर ने विवस्वान को ताण्डव, लास्य, नृत्य और नृत्त का उपदेश दिया था। किन्तु राजशेखर का कहना है कि शंकर ने सर्वप्रथम ब्रह्मा को उपदेश दिया था और ब्रह्मा ने अपने अट्ठारह शिष्यों को।
यद्यपि आज उक्त ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है तथापि वे अति प्राचीन है
और इसे पुष्ट प्रमाणों द्वारा विश्वस्त रूप में प्रमाणित किया गया हैं, जैसेसूक्ति-ग्रन्थ में पाणिनि की स्तुति प्रसंग में राजशेखर द्वारा विरचित 'जाम्बवती जय' नामक काव्य का स्पष्ट उल्लेख है
नमः पाणिनये तस्मै यस्मादाविरभूदिह। आदौ व्याकरणं, काव्यमनु जाम्बवती जयम् ।।२९
और पुनः ‘सदुक्ति कर्णामृते' कवि विशेष की प्रशंसा पर आधारित एक पद्य है, जहाँ कुछ कवियों के साथ ही पाणिनि की स्पष्ट चर्चा की गई
सुबन्धौ भक्तिनः क इह रघुकारे न रमते धृतिर्दाक्षी पुत्रे हरति हरिश्चन्दोऽपिहृदयम्। विशुद्धोक्तः शूरः प्रकृतिमधुरा भारवि गिरः स्तयाप्यन्तर्मोदं कमपि भवभूतिर्वितनुते।।