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पञ्चम असियाद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलड्डार, गुण एवं दोष,
क्रमशः द्वितीय और चतुर्थ वर्ण के साथ योग, रेफ और तुल्यवर्ण से युक्त वर्ण तथा ट वर्ग और श, ष, वर्ण दीर्घ समासवाली और कठोर (उद्धत) रचना ओजगुण की व्यञ्जक है।०६ आगे उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ण से द्वितीय वर्ण तथा तृतीय वर्ण से चतुर्थ वर्ण के मिले हुए वर्ण, नीचे ऊपर या दोनों जगह किसी भी वर्ण के साथ रेफ का संयोग तुल्यवर्गों का संयोग णकार रहित ट वर्ग (ट ठ ड ढ) श, ष का संयोग और दीर्घ समासवाली कठोर रचना ओजगुण की व्यञ्जक है।०७
आचार्य हेमचन्द्र ने ओजगुण के उदाहरण स्वरूप में निम्न पद्य प्रस्तुत किया है
मू मुद्दत्तकृता विरलगलगलदस्त संसक्त धारा। धौतेशधिप्रसादोपनतजयजगज्जातमिथ्यामहिम्नाम्।। कैलासोल्लासनेच्छाव्यतिकरपिशुनोत्सर्पिदो द्धराणां
दोष्णां चैषां किमेतत्फलमिह नगरीरक्षणे यत्प्रयासः।।१०८ यहाँ उपर्युक्त वर्णो की संरचना और दीर्घ समासादि के होने से ओजगुण की अभिव्यक्ति हो रही है। आचार्य मम्मट ने इसे अविमृष्टविधेयांश नामक समासगत दोष के उदाहरण रूप में भी उद्धृत किया है।०९ उपर्युक्त कथित वर्गों से विपरीत वर्णों वाली रचना ओजगुण की व्यञ्जक नहीं होती हैं। जैसे
देशः सोऽमरातिशोणितजलैर्यस्मिन्हदाः पूरिताः। क्षत्रादेव तथाविधः परिभवस्तातस्य केशग्रहः।।