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पञ्चम, परिच्छेद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष,
(क वर्ग, च वर्ग आदि) अटवर्ग अर्थात् ट वर्ग रहित- ट ठ ड ढ़ रहित शेष वर्ण और इश्व से व्यवहृत रेफ और णकार- ये वर्ण और असमास अर्थात् समास रहित या छोटे-छोटे समास वाली तथा मृदु रचना माधुर्य गुण की व्यञ्जक होती हैं।८
यथा
शिञ्जानम मञ्जीराश्चारूकाञ्चनकाञ्चयः। कङ्कणाङ्कभुजा भान्ति जितानङ्ग तवाङ्गनाः।।९
प्रस्तुत रचना में अधिकांशतः वर्ग के पंचम वर्गों का प्रयोग किया गया है। अतः यह रचना माधुर्यगुण की व्यञ्जक है।
इसी प्रकार
दारुणरणे रणन्तं करिदारुणकारणं कृपाणंते। रमणकृते रणकरणकी पश्यति तरुणीजनो दिव्यः।।१००
इस उदाहरण में रेफ व णकार की वहुलता होने से ये वर्णादि माधुर्य गुण के व्यञ्जक हैं किन्तु इससे भिन्न- ट वर्गादि से युक्त रचना माधुर्यगुण की व्यञ्जक नही यथा
अकुण्ठोत्कण्ठया पूर्णमाकण्ठं कलकण्ठिमाम्।
कम्बुकण्ठयाक्षणं कण्ठेकुरु कण्ठार्तिमुद्धर।। यहाँ शृङ्गार रस के प्रतिकूल वर्गों का समायोजन होने से माधुर्य गुण नहीं है। इसे मम्मट ने प्रतिकूलवर्णता नामक वाक्य दोष के उदाहरण