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________________ पञ्चम आसिलद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलड्डार, गुण एवं दोष/ गुण विवेचन तो किया है पर गुण- स्वरूप पर प्रकाश नहीं डाला है। गुण-भेद ___ सर्वप्रथम आचार्य भरत ने दस गुणों का उल्लेख किया है श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य ओज, पदसौकुमार्य, अर्थाभिव्यक्ति, उदारता और कान्ति।६० ___ इन्हीं का अनुसरण करते हुए आचार्य दण्डी६९ व वामनर ने भी दस गुणों का उल्लेख किया हैं, जिनके नाम भरत निर्दिष्ट ही है। इनके अतिरिक्त वामन ने दस अर्थगुणों का भी उल्लेख किया है, जिससे उनके मतानुसार गुणों की संख्या २० हैं, किन्तु इनके स्वरूप में अन्तर है। इस प्रकार दण्डी को पूर्णरूपेण एवं वामन को आंशिक रूप में भरत का अनुयायी कहा जा सकता है।६३ दूसरी परम्परा में वे आचार्य है, जिन्होंने माधुर्य, ओज और प्रसादइन तीन गुणों का उल्लेख किया है। इसमें भामह, आनन्दवर्धन, मम्मट और आचार्य हेमचन्द्र को रखा जा सकता है। आचार्य मम्मट ने वामन सम्मत शब्द और अर्थ गुणों का खण्डन करते हुए लिखा है कि कुछ गुण दोषाभावरूप है; कुछ दोषरूप हैं और शेष का अन्तर्भाव माधुर्य, ओज और प्रसाद में ही हो जाता है। अतः गुणों की संख्या तीन है, दस नहीं। तीसरी परम्परा में उन समस्त आचार्यों को रखा जा सकता है १५३
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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