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पञ्चम अहिद: जैनकुमारसम्भव मे रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
के लिए बाध्य करती है। वह ऋषभदेव दौड़कर पिता से लिपट जाते हैं। उनके पिता शुशु के अंग स्पर्श से विभोर हो जाते है। उनकी आँखें हर्षातिरेक से वन्द हो जाती है और वे तात-तात कहकर पुकारने लगते हैं
"अव्यक्त मुक्तं स्खलदंघ्रियानं निःकारणं हास्य मवस्रमङ्गम्। जनस्य यद्दोषतयाभिधेयं, तच्छैशवे यस्य बभूव भूषा।।"५७
जयशेखर ने नवविवाहित ऋषभदेव को देखने के लिए नारियों के चित्रण में हास्य रस का रोचक वर्णन किया है। जब कोई स्त्री उन्हें देखने की शीघ्रता में अपने रोते शिशु को छोड़कर गोद में विल्ली का वच्चा उठाकर दौड़ पड़ी। उसे देखकर सारी वारात हँसने लगी, किन्तु उसे इसका भान तक नहीं हुआ
"तुर्णिमुढदृगपास्य रुदन्तं, पोतमोतुमधिरोप्य कटीरे। कापि धावितवतौ नहि जज्ञे, हस्यमानमपि जन्यजनैः स्वम्।।११८
स्वामी ऋषभदेव को गार्हस्थ्य जीवन में प्रवृत्त करने के लिए इन्द्र की उक्तियों में शान्त रस की क्षीण अभिव्यक्ति हुई है।
"वयस्यनंगस्य वयस्य भूते, भूतेश रुपेऽनुपमस्वरूपे।
पदींदिरायां कृतमंदिरायां को नाम कामेविमनास्त्वदन्यः।।९ भयानक रस का प्रसंग है
अप्यतुच्छतया पुच्छा- घातकम्पित भूतलम अप्युदारदरीक्रोड- क्रीडत्क्षेडाभयङ्करम- २/३८-२९